मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009
जब होता है कोई हम-दम होता है
जावेद अख़्तर
सच ये है बेकार हमें ग़म होता है
जो चाहा था दुनिया में कम होता है
ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम
हमसे पूछो कैसा आलम होता है
ग़ैरों को कब फ़ुरसत है दुख देने की
जब होता है कोई हम-दम होता है
ज़ख़्म तो हम ने इन आँखों से देखे हैं
लोगों से सुनते हैं मरहम होता है
ज़हन की शाख़ों पर अशार आ जाते
हैं जब तेरी यादों का मौसम होता है
सच ये है बेकार हमें ग़म होता है
जो चाहा था दुनिया में कम होता है
ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम
हमसे पूछो कैसा आलम होता है
ग़ैरों को कब फ़ुरसत है दुख देने की
जब होता है कोई हम-दम होता है
ज़ख़्म तो हम ने इन आँखों से देखे हैं
लोगों से सुनते हैं मरहम होता है
ज़हन की शाख़ों पर अशार आ जाते
हैं जब तेरी यादों का मौसम होता है
शुक्रवार, 14 अगस्त 2009
स्वेतान्त्र्ता दिवस पर
गुरुवार, 30 जुलाई 2009
ग़लिब
Lyrics: Mirza ग़लिब
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया है मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे।
होता है निहाँ गर्द में सहरा मेरे
होतेघिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया मेरे आगे।
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे
पीछेतू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे।
ईमान मुझे रोके है जो खींचे है मुझे
कुफ़्रकाबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे।
गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है
दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे।
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया है मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे।
होता है निहाँ गर्द में सहरा मेरे
होतेघिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया मेरे आगे।
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे
पीछेतू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे।
ईमान मुझे रोके है जो खींचे है मुझे
कुफ़्रकाबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे।
गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है
दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे।
रविवार, 21 जून 2009
तुम मुझे न यद् करना
रविवार, 24 मई 2009
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।
एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।
निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।
दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।
मंगलवार, 19 मई 2009
भोपाल गैस त्रासदी को समर्पित
इस ताल तलैया की नगरी से १ दुखद हादसा गुजरा था !
इस स्वर्ग सी सुंदर नगरी से १ गमो का काफिला गुजरा था !!
मच गई थी उथल पुथल ,
और मौत तांडव करती थी !
जहर घुल गया था उस नगरी में ,
जीसे जन्नत सजदा करती थी !!
साँस घुटी थी आँखे थी बंद ,
बो बक्त मुस्किल का गुज़रा था!!
--------------१ दुखद हादसा गुजरा था !
होती है जब होली घर में ,
रंग गमो के बहते है
आता है कोई खुसी का पल
सब आंसू पी कर रहते !
सन्नाटा था चारो तरफ़ ,उस रात काल का पहरा था !!
--------------१ दुखद हादसा गुजरा था !
जब सोचेता हु मै इन बातो को,
आँख से आसूं बहते है!
मै तो हु १ पराया उनके परिजन,
इस दुःख को कायसे सहेते है!!
हो गया था तबाह ये चमन ,बो रूप मौत का दूसरा था !
--------------१ दुखद हादसा गुजरा था !
वीरेंदर "कनक"चोलकर
गुरुवार, 30 अप्रैल 2009
रविवार, 26 अप्रैल 2009
पगली लड़की
पगली लड़की
कुमार विश्वास के दुआर
वन मोरे आसम क्रियेशन ऑफ द्र। कुमार विश्वास
पगली लड़की
अमावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,
जब दर्द की प्याली रातों में गम आंसून के घुलता हैं,
जब पिछवाड़े के कमरे में हम नीपाट अकेले होते हैं,
जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं, सब सोते हैं, हम रोते हैं,
जब बार बार दोहराने से सारी यादें चूक जाती हैं,
जब उंच-नीच समझने में माथे की नस दुख जाती हैं,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
जब पोते खाली होते हैं, जब हर्फ़ सवाली होते हैं, जब ग़ज़लें रास नहीं आतीं,
अफ़साने गाली होते हैं।
जब बासी फीकी धूप समेटें दीं जल्दी ढाल जाता है,
जब सूरज का लसखर च्छाट से गलियों में देर से जाता है, जब जल्दी घर जाने की इच्छा मान्न ही मान्न घुट जाती है,
जब कॉलेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है,
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है,
जब लाख माना करने पर भी पारो पढ़ने आ जाती है,
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
जब कमरे में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है,
जब दर्पण में आँखों के नीचे झाई दिखाई देती है,
जब बड़की भाभी कहती हैं, कुच्छ सेहत का भी ध्यान करो, क्या लिखते हो दिनभर, कुच्छ सपनों का भी सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में कुच्छ रिश्ते वाले आते हैं,
जब बाबा हूमें बुलाते हैं, हम जाते हैं, घबराते हैं,
जब सारी पहने एक लड़की का एक फोटो लाया जाता है,
जब भाभी हूमें मानती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,
जब सारे घर का समझना हूमको फनकारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
दीदी कहती हैं उस पगली लड़की की कुच्छ औकात नहीं,
उसके दिल में भैया तेरे जैसे प्यारे जसबाट नहीं,
वो पगली लड़की नौ दीं मेरे लिए भूकी रहती है,
चुप-चुप सारे व्रत करती है, पर मुझसे कभी ना कहती है,
जो पगली लड़की कहती है, मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ,
लेकिन में हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लड़की पर अपना कुच्छ अधिकार नहीं बाबा,
यह कथा-कहानी किस्से हैं, कुच्छ भी तो सार नहीं बाबा,
बस उस पगली लड़की के संग जीना फुलवारी लगता है,
और उस पगली लड़की के भीं मरना भी भारी लगता है
कुमार विश्वास के दुआर
वन मोरे आसम क्रियेशन ऑफ द्र। कुमार विश्वास
पगली लड़की
अमावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,
जब दर्द की प्याली रातों में गम आंसून के घुलता हैं,
जब पिछवाड़े के कमरे में हम नीपाट अकेले होते हैं,
जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं, सब सोते हैं, हम रोते हैं,
जब बार बार दोहराने से सारी यादें चूक जाती हैं,
जब उंच-नीच समझने में माथे की नस दुख जाती हैं,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
जब पोते खाली होते हैं, जब हर्फ़ सवाली होते हैं, जब ग़ज़लें रास नहीं आतीं,
अफ़साने गाली होते हैं।
जब बासी फीकी धूप समेटें दीं जल्दी ढाल जाता है,
जब सूरज का लसखर च्छाट से गलियों में देर से जाता है, जब जल्दी घर जाने की इच्छा मान्न ही मान्न घुट जाती है,
जब कॉलेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है,
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है,
जब लाख माना करने पर भी पारो पढ़ने आ जाती है,
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
जब कमरे में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है,
जब दर्पण में आँखों के नीचे झाई दिखाई देती है,
जब बड़की भाभी कहती हैं, कुच्छ सेहत का भी ध्यान करो, क्या लिखते हो दिनभर, कुच्छ सपनों का भी सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में कुच्छ रिश्ते वाले आते हैं,
जब बाबा हूमें बुलाते हैं, हम जाते हैं, घबराते हैं,
जब सारी पहने एक लड़की का एक फोटो लाया जाता है,
जब भाभी हूमें मानती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,
जब सारे घर का समझना हूमको फनकारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
दीदी कहती हैं उस पगली लड़की की कुच्छ औकात नहीं,
उसके दिल में भैया तेरे जैसे प्यारे जसबाट नहीं,
वो पगली लड़की नौ दीं मेरे लिए भूकी रहती है,
चुप-चुप सारे व्रत करती है, पर मुझसे कभी ना कहती है,
जो पगली लड़की कहती है, मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ,
लेकिन में हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लड़की पर अपना कुच्छ अधिकार नहीं बाबा,
यह कथा-कहानी किस्से हैं, कुच्छ भी तो सार नहीं बाबा,
बस उस पगली लड़की के संग जीना फुलवारी लगता है,
और उस पगली लड़की के भीं मरना भी भारी लगता है
शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009
शनिवार, 11 अप्रैल 2009
तन्हा
तुझसे तन्हा होकर हम तन्हाई में खोये है !
पलकों ने पोछे है आसूं जब जब भी हम रोये है !!
दिल के दर्द को दिल ही जाने और कोई क्या जाने गा !
हम तो अपने दिल के साथ फुट फुट कर रोये है !!
वीरेन्द्र "कनक" चोलकर
सोमवार, 6 अप्रैल 2009
मंगलवार, 31 मार्च 2009
बुधवार, 25 मार्च 2009
खामोसे आँगन
बड़ा खामोश आँगन है , जरा पायल तो छान्काओ!
थोडी बेचेनी है दिल में जरा इस दिल को समझाओ !!
कहा था क्या अभी तुमने उसे मै सुन नही पाया !
मरी हर बात बन जाए जो तुम वो बात दोहराओ !!
इ खाली हो जब दिल का कई गम घर बनते है !
मेरा हर गम जो तुम इस दिल में बस जाओ !!
तारे होतो को गालो को तेरे बालो को क्या देखू !
मेरी धड़कन ना रुक जाए मुझे इतना ना तड़पाओ !!
विरेन्द्र "कनक" चोलकर
रविवार, 18 जनवरी 2009
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