लहराएगा अमर तिरंगा इज्जत और इमान से !
टकरा लेंगे हम मत्बले हर आंधी तूफान से !!
खून पसीना देकर हमने इसका रंग सजाया है !
टकराया है जो भी हमसे आखिर में पछताया है !!
वीरन्द्र "कनक" चोलकर
शनिवार, 14 अगस्त 2010
रविवार, 8 अगस्त 2010
ख़ुमार बाराबंकवी
एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिएदो दिन की ज़िन्दगी का मज़ा हमसे पूछिए
भूले हैं रफ़्ता-रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
किश्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिए
आगाज़े-आशिक़ी का मज़ा आप जानिए
अंजामे-आशिक़ी का मज़ा हमसे पूछिए
जलते दीयों में जलते घरों जैसी लौ कहाँ
सरकार रोशनी का मज़ा हमसे पूछिए
वो जान ही गए कि हमें उनसे प्यार है
आँखों की मुख़बिरी का मज़ा हमसे पूछिए
हँसने का शौक़ हमको भी था आप की तरह
हँसिए मगर हँसी का मज़ा हमसे पूछिए
हम तौबा करके मर गए क़ब्ले-अज़ल "ख़ुमार"
तौहीन-ए-मयकशी का मज़ा हमसे पूछिये
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