गुरुवार, 30 अप्रैल 2009

चंद शेर माँ के लिए ( मुन्नाबर राणा )

1

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है

जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई
देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई

माँ


माँ
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती

मुनाबर राणा

रविवार, 26 अप्रैल 2009

पगली लड़की

पगली लड़की
कुमार विश्वास के दुआर
वन मोरे आसम क्रियेशन ऑफ द्र। कुमार विश्वास
पगली लड़की
अमावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,
जब दर्द की प्याली रातों में गम आंसून के घुलता हैं,
जब पिछवाड़े के कमरे में हम नीपाट अकेले होते हैं,
जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं, सब सोते हैं, हम रोते हैं,
जब बार बार दोहराने से सारी यादें चूक जाती हैं,
जब उंच-नीच समझने में माथे की नस दुख जाती हैं,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
जब पोते खाली होते हैं, जब हर्फ़ सवाली होते हैं, जब ग़ज़लें रास नहीं आतीं,
अफ़साने गाली होते हैं।
जब बासी फीकी धूप समेटें दीं जल्दी ढाल जाता है,
जब सूरज का लसखर च्छाट से गलियों में देर से जाता है, जब जल्दी घर जाने की इच्छा मान्न ही मान्न घुट जाती है,
जब कॉलेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है,
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है,
जब लाख माना करने पर भी पारो पढ़ने जाती है,
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
जब कमरे में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है,
जब दर्पण में आँखों के नीचे झाई दिखाई देती है,
जब बड़की भाभी कहती हैं, कुच्छ सेहत का भी ध्यान करो, क्या लिखते हो दिनभर, कुच्छ सपनों का भी सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में कुच्छ रिश्ते वाले आते हैं,
जब बाबा हूमें बुलाते हैं, हम जाते हैं, घबराते हैं,
जब सारी पहने एक लड़की का एक फोटो लाया जाता है,
जब भाभी हूमें मानती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,
जब सारे घर का समझना हूमको फनकारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
दीदी कहती हैं उस पगली लड़की की कुच्छ औकात नहीं,
उसके दिल में भैया तेरे जैसे प्यारे जसबाट नहीं,
वो पगली लड़की नौ दीं मेरे लिए भूकी रहती है,
चुप-चुप सारे व्रत करती है, पर मुझसे कभी ना कहती है,
जो पगली लड़की कहती है, मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ,
लेकिन में हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लड़की पर अपना कुच्छ अधिकार नहीं बाबा,
यह कथा-कहानी किस्से हैं, कुच्छ भी तो सार नहीं बाबा,
बस उस पगली लड़की के संग जीना फुलवारी लगता है,
और उस पगली लड़की के भीं मरना भी भारी लगता है