सोमवार, 22 मार्च 2010

विष्णु सक्स्सेना द्वारा

थाल पूजा का लेकर चले आइये , मन्दिरों की बनावट सा घर है मेरा।

आरती बन के गूँजो दिशाओं में तुम और पावन सा कर दो शहर ये मेरा।


दिल की धडकन के स्वर जब तुम्हारे हुये


बाँसुरी को चुराने से क्या फायदा,

बिन बुलाये ही हम पास बैठे यहाँ

फिर ये पायल बजाने से क्या फायदा,

डगमगाते डगों से न नापो डगर , देखिये बहुत नाज़ुक जिगर है मेरा।


झील सा मेरा मन एक हलचल भरी

नाव जीवन की इसमें बहा दीजिये,

घर के गमलों में जो नागफनियां लगीं

फेंकिये रात रानी लगा लीजिये,

जुगनुओ तुम दिखा दो मुझे रास्ता, रात काली है लम्बा सफर है मेरा।


जो भी कहना है कह दीजिये बे हिचक

उँगलियों से न यूँ उँगलियाँ मोडिये,

तुम हो कोमल सुकोमल तुम्हारा हृदय

पत्थरों को न यूँ कांच से तोडिये,

कल थे हम तुम जो अब हमसफर बन गये, आइये आइये घर इधर है मेरा।

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