मंगलवार, 23 नवंबर 2010


शाम
होने को है
शाम होने को है
लाल सूरज समंदर मे सोने को है
और उसके परे
कुछ परिंदे कतारें बनाए
उन्हीं जंगलों को चले
जिनके पेड़ों की शाखों पे हैं घोंसले
ये परिंदे वहीं लौटकर जाएँगे
और सो जाएँगे
शाम होने को है
लाल सूरज ...

हम ही हैरान हैं
इन मकानों के जंगल में अपना कोई भी ठिकाना नहीं
शाम होने को है
हम कहां जाएँगे
शाम होने को है
लाल सूरज ...
शाम होने को है
हम कहां जाएँगे
जाबेद अख्तर

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